एमएसएमई: राहत भी सवाल भी

एमएसएमई: राहत भी सवाल भी

संपादकीय
घरेलू सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) की दिक्कतों पर नजर डालने के लिए गठित भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक समिति ने कई ऐसे उपाय सुझाए हैं जो काबिले तारीफ हैं। इनमें 5,000 करोड़ रुपये मूल्य का संकटग्रस्त परिसंपत्ति फंड बनाने का विचार शामिल है जो टेक्सटाइल अपग्रेडेशन फंड स्कीम के तर्ज पर काम कर सकता है। समिति ने यह भी कहा कि एमएसएमई के विभिन्न प्राधिकार के समक्ष पंजीयन के बजाय ज्यादातर गतिविधियों के लिए स्थायी खाता संख्या (पैन) को ही पर्याप्त कर दिया जाना चाहिए। उसके मुताबिक पूरा ध्यान बाजार की सुविधा प्रदान करने और क्षेत्र में कारोबारी सुगमता लाने पर केंद्रित किया जाना चाहिए। समिति ने सुझाव दिया कि एमएसएमई की देरी से भुगतान होने की दिक्कत समाप्त करने के लिए एमएसएमई अधिनियम में संशोधन करके सभी एमएसएमई के लिए एक खास राशि से ऊपर के इनवॉइस अपलोड करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। समिति विभिन्न संस्थानों के समक्ष विविध पंजीयन के खिलाफ है। यह न केवल जटिल है बल्कि इससे प्रयासों का दोहराव भी होता है। एक अन्य रोचक सुझाव में पैनल ने सरकार से 10,000 करोड़ रुपये के सरकार प्रायोजित कोष की अनुशंसा की है ताकि इस क्षेत्र में निवेश करने वाले वेंचर कैपटल और प्राइवेट इक्विटी फंड की सहायता की जा सके। भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) को ऐसा मंच बनाने में सुविधा प्रदाता की भूमिका निभानी चाहिए। इससे एमएसएमई की सहायता हो सकती है क्योंकि यह क्षेत्र काफी हद तक इक्विटी के लिए असंगठित स्रोतों पर निर्भर करता है। इसमें स्वयं की बचत और परिवारों और मित्रों से मिलने वाली फंडिंग शामिल है।
समिति के सुझाव व्यापक तौर पर उपयोगी हैं क्योंकि एमएसएमई क्षेत्र को मदद की आवश्यकता तो है। फंड का असमान वितरण भी हमारी अर्थव्यवस्था की एक बड़ी समस्या है। एमएसएमई को बहुत कम पूंजी आवंटित हुई है क्योंकि वाणिज्यिक बैंक ऐसे ऋण को बहुत जोखिम भरा समझते हैं। आरबीआई की ताजा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में भी छोटे कारोबार को दिए जाने वाले ऋण को लेकर चिंता जताई गई है। वर्ष 2017-18 के बीच एमएसएमई को खूब ऋण दिया गया। आरबीआई की रिपोर्ट में इस ऋण को रेखांकित करते हुए सुझाव दिया गया कि ऋण में इतनी अधिक बढ़ोतरी के चलते ऋण देने के मानकों में शिथिलता की जांच की स्थिति बनती है। उसने बैंकों की निगरानी की नीति की बात भी कही।
इस संदर्भ में पैनल का गारंटी रहित ऋण को दोगुना करने का सुझाव जोखिम भरा हो सकता है। इस सुझाव में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और स्वयं सहायता समूह आधारित संस्थान भी शामिल हैं। माइक्रो यूनिट्स ऐंड रीफाइनैंस एजेंसी (मुद्रा) ऋण योजना में बेहतर ऋण मानकों की अनदेखी की गई। ऋण की वसूली भी एक चुनौती है। मुद्रा ऋण योजना के आने वाले दिनों में फंसे हुए कर्ज का बड़ा स्रोत होने की आशंका नजर आने लगी है। मार्च 2019 में समाप्त वित्त वर्ष में योजना का फंसा हुआ कर्ज 69 फीसदी बढ़कर 16,480.87 करोड़ रुपये हो गया जबकि एक साल पहले यह मात्र 9,769 करोड़ रुपये था। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के मुताबिक योजना में फंसे हुए कर्ज का अनुपात अब तक के अनुमान से काफी अधिक हो सकता है। मुद्रा ऋण लेने वाले कर्जदारों की प्रकृति अस्थिर और चक्रीय होने के कारण संदेह के दायरे में है वहीं फंसे हुए कर्ज में इजाफा बताता है कि बैंक न तो सही ढंग से निगरानी कर रहे हैं और न ही समय पर पुनर्भुगतान हो पा रहा है। ध्यान रहे कि निजी क्षेत्र के बैंकों का प्रदर्शन इस मोर्चे पर भी सरकारी बैंकों से बेहतर है। कुल मिलाकर गारंटी रहित ऋण से समस्या हल होने वाली नहीं है।

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