भारत को विश्व गुरु बनाने में मगध के प्राचीन विश्वविद्यालयों की महती भूमिका रही


भारत को विश्व गुरु बनाने में मगध के प्राचीन विश्वविद्यालयों की महती भूमिका रही


आज पटना विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि “भारत को विश्व गुरु बनाने में, मगध के विश्व विख्यात विश्वविद्यालयों और उनके ग्रंथालयों की महती भूमिका रही। उन्होंने कहा कि नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालयों और उनके समृद्ध ग्रंथालयों का चरित्र वस्तुत: वैश्विक था। जहां सुदूर देशों से विद्वान अध्ययन, अध्यापन और ग्रंथों पर शोध करने आते थे। ये विश्वविद्यालय भारत की बौद्धिक एकता के केन्द्र थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि “हमने अपने ज्ञान को बौद्धिक संपदा नहीं माना। हमारा विश्व दर्शन “वसुधैव कुटुंम्बकम्” के आदर्श से परिभाषित होता रहा है।” श्री नायडु ने कहा कि हमने अपने ज्ञान और विद्या को विश्व कल्याण के लिए सबसे साझा किया और इसी से भारतीय आध्यात्म और ज्ञान का विश्व भर में प्रसार हुआ।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पटना विश्वविद्यालय के योगदान को याद किया - उन्होंने कहा कि यहीं से पढ़कर निकले जय प्रकाश नारायण जी, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री, डॉ. विधान चंद्र राय, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, श्री अनुग्रह नारायण सिन्हा, न्यायमूर्ति श्री वी. पी. सिन्हा, और भारत के प्रथम अटॉर्नी जनरल श्री लाल नारायण सिन्हा जैसी महान विभूतियों का राष्ट्र निर्माण में अभिनंदनीय योगदान रहा है। वर्तमान में भी यहाँ से पढ़े केंद्रीय कानून मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री श्री रामविलास पासवान, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री अश्वनी कुमार चौबे, राज्य सभा सांसद श्री जे.पी. नड्डा, इस विश्वविद्यालय का नाम रौशन कर रहे है।
उपराष्ट्रपति ने पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों के संकलन को भी देखा। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि “आप अटल जी द्वारा शुरु किए गये राष्ट्रीय पाडुंलिपि मिशन का लाभ उठायें। इस योजना के तहत आप न केवल इन पांडुलिपियों का संरक्षण कर सकेंगे बल्कि उन्हें विश्वभर के शोधार्थियों को उपलब्ध भी करवा सकेंगे।”
आधुनिक परिपेक्ष्य में पुस्तकालयों को प्रासंगिक बनाये रखने पर विचार व्यक्त करते हुए श्री नायडु ने कहा कि “गूगल के इस युग में पुस्तकालयों को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि उनकी भूमिका को और बढ़ाया जाय। विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रम और अध्यापन पद्धति में बदलाव लाने चाहिए जिससे छात्रों में पुस्तकालयों में संदर्भ ग्रंथों को पढ़ने के लिए रुचि जगे।”
उन्होंने सलाह दी कि “पुस्तकालय, विश्वविद्यालय में साहित्यिक और सामयिक विमर्श का केन्द्र होने चाहिए।” जरुरी है कि पुस्तकालयों की बौद्धिक जीवंतता बनी रहे।
इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल श्री फागू चौहान, मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार, उपमुख्यमंत्री श्री सुशील मोदी सहित विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रास बिहारी प्रसाद सिंह तथा अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।
Following is the text of Vice President's address in Hindi:
" प्रतिष्ठित पटना विश्वविद्यालय के इस समृद्ध पुस्तकालय के शताब्दी वर्ष समारोह में आप सभी के बीच उपस्थित होकर प्रसन्न हूं।
मित्रों,
एक समृद्ध पुस्तकालय अथाह ज्ञान का मंदिर होता है। पुस्तकों में सिमटे असीम ज्ञान के सामने मनुष्य को अपनी लघुता का अहसास, उसे विनम्र बना देता है। जीवन में पुस्तकों की महत्ता बताते हुए प्राचीन रोमन दार्शनिक सिसरों ने कहा थाबिना किताबों का कमरा, बिना आत्मा के शरीर के समान है। यदि ज्ञान, जिज्ञासा मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृत्ति हैं तो पुस्तक और पुस्तकालय के प्रति आदर और आकर्षण होना स्वाभाविक है। हमारे संविधान में अभिव्यक्ति को व्यक्ति का मूल अधिकार माना गया है। लेकिन साथ ही विद्वानों का मत है – बोलने से पहले सोचो और सोचने से पहले पढ़ो।
पिछली एक शताब्दी से आपके इस पुस्तकालय ने इन उक्तियों में निहित भावनाओं को चरितार्थ किया है। आपने कई पीढ़ियों को ज्ञान का दान दिया है। समाज के विकास में इस संस्थान का योगदान अभिनंदनीय है।
मित्रों,
सदियों, भारत विश्व गुरु रहा है और भारत को विश्व गुरु बनाने में, मगध के विश्व विख्यात विश्वविद्यालयों और उनके ग्रंथालयों की महती भूमिका रही। मेरे सम्मानीय पूर्ववर्ती और स्वाधीन भारत के दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि पुस्तकों के माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ते हैं। नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालयों और उनके समृद्ध ग्रंथालयों का चरित्र वस्तुत: वैश्विक था। जहां सुदूर देशों से विद्वान अध्ययन, अध्यापन और ग्रंथों पर शोध करने आते थे। ये विश्वविद्यालय प्राय: बौद्ध विहारों से विकसित हुए थे - जिनमें, संस्कृत, पाली, तिब्बती भाषाओं में बौद्ध, वैदिक दर्शन, अध्यात्म, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र आदि विषयों पर पुस्तकों का समृद्ध भंडार था। देश के अन्य विश्वविद्यालयों के साथ भी विद्वानों का आदान-प्रदान होता रहता था। इस प्रकार ये विश्वविद्यालय भारत की बौद्धिक एकता के केन्द्र थे।
हर विश्वविद्यालय का कर्तव्य और उद्देश्य होता है कि वह अपनी ज्ञान परंपरा से अखिल विश्व को लाभान्वित करे। सदियों तक भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों ने देश-विदेश के शोधकर्ताओं, विद्वानों को अपने ग्रंथालयों से लाभान्वित किया। हमने अपने ज्ञान को बौद्धिक संपदा नहीं माना। हमारा विश्व दर्शन वसुधैव कुटुंम्बकम् के आदर्श से परिभाषित होता रहा है। विद्या को बांटना हमारा संस्कार रहा है - हर्तृ: न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता - विद्या चोरों को दिखाई नहीं देती और बांटने से जिसका विस्तार ही होता है। हमने अपने ज्ञान और विद्या को विश्व कल्याण के लिए सबसे साझा किया और इसी से भारतीय आध्यात्म और ज्ञान का विश्व भर में प्रसार हुआ।
कोई भी विश्वविद्यालय पुस्तकालय के बिना पूर्ण नहीं है। पटना विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास में भी इस पुस्तकालय का योगदान उल्लेखनीय है। यहीं से पढ़कर निकले जय प्रकाश नारायण जी, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री, डॉ. विधान चंद्र राय, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, श्री अनुग्रह नारायण सिन्हा, न्यायमूर्ति श्री वी. पी. सिन्हा, और भारत के प्रथम अटॉर्नी जनरल श्री लाल नारायण सिन्हा जैसी महान विभूतियों का राष्ट्र निर्माण में अभिनंदनीय योगदान रहा है ।
वर्तमान में भी यहाँ से पढ़े केंद्रीय कानून मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री श्री रामविलास पासवान, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री अश्वनी कुमार चौबे, राज्य सभा सांसद श्री जे.पी. नड्डा, इस विश्वविद्यालय का नाम रौशन कर रहे है ।
पटना विश्वविद्यालय पुस्तकालय अपने स्थापना के समय से ही राज्य तथा देश-विदेश के विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का केंद्र रहा है। मुझे बताया गया है कि इस पुस्तकालय में लगभग 6 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां, 3 लाख से अधिक किताबें, 25 हजार थीसिस एवं कई हजार शोध पत्र उपलब्ध हैं। मैंने आज उन दुर्लभ पांडुलिपियों को देखा। मैं अपेक्षा करूंगा कि आप अटल जी द्वारा शुरु किए गये राष्ट्रीय पाडुंलिपि मिशन का लाभ उठायें। इस मिशन का आदर्श वाक्य ही है ‘Conserving past for the future’। एक अनुमान के अनुसार देशभर में विभिन्न भाषाओं, लिपियों, विषयों और बनावट की लगभग 1 करोड़ पाडुलिपियां हैं। ये पाडुंलिपियां न केवल हमारी ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत भी है। इस योजना के तहत आप न केवल इन पांडुलिपियों का संरक्षण कर सकेंगे बल्कि उन्हें विश्वभर के शोधार्थियों को उपलब्ध भी करवा सकेंगे।
मुझे हर्ष है कि यह पुस्तकालय शोध-सिंधु तथा नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी से जुड़ चुका है जिसमे लगभग 6 करोड़ किताबें, 15 लाख जर्नल तथा कई लाख थीसिस ऑनलाइन उपलब्ध है तथा विद्यार्थीं अपनी सुविधानुसार इसका लाभ इस पुस्तकालय के द्वारा प्राप्त कर सकते है। मुझे आशा है कि ये पुस्तकें तथा जर्नल Distance Education लेने वाले छात्रों को भी आनलाइन उपलब्ध होंगी। मुझे यह भी बताया गया कि पुस्तकालय के डिजिटाईज़ेशन की प्रक्रिया चल रही है, जिससे इस पुस्तकालय का लाभ दुनिया के किसी भी कोने से उठाया जा सकता है। मैं इस पहल के लिए आपको शुभकामनाऐं देता हूं।
मित्रों,
यह युग संचार क्रांति का युग है जहां विश्व भर की सूचना बटन दबाने मात्र से आपके स्मार्ट फोन पर उपलब्ध होती है। गूगल के इस युग में पुस्तकालयों को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि उनकी भूमिका को और बढ़ाया जाय। विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रम और अध्यापन पद्धति में बदलाव लाने चाहिए जिससे छात्रों में पुस्तकालयों में संदर्भ ग्रंथों को पढ़ने के लिए रुचि जगे। हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारुप तैयार किया गया है जिसमें Liberal Education तथा Multidisciplinary Education पर विशेष बल दिया गया है। शिक्षा नीति में देश को Knowledge Society बनाने के लिए सभी को उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। यह लक्ष्य समृद्ध पुस्तकालयों तथा बौद्धिक रुप से जीवंत विश्वविद्यालयों के बिना पूर्ण नहीं होगा।
पुस्तकालय, विश्वविद्यालय में साहित्यिक और सामयिक विमर्श का केन्द्र होने चाहिए। पुस्तकालय परिसर में छोटे सेमिनार, Discussion या संगोष्ठी कराने पर विचार किया जाना चाहिए। डिजिटल युग में पुस्तकालयों का समृद्ध डिजिटल संकलन होना चाहिए – जैसे वीडियो या आडियो लाइब्रेरी। जरुरी है कि पुस्तकालयों की बौद्धिक जीवंतता बनी रहे।
मित्रों,
पटना विश्वविद्यालय और पुस्तकालय ने बहुत ही मेहनत से इन नायाब पाण्डुलिपियों और पुस्तकों को यहाँ के पुस्तकालय में संरक्षित किया है। इन पुस्तकों को सरंक्षित रखना और सही उपयोग, आप शिक्षकों और विद्यार्थियों की भी जिम्मेदारी है। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हो रही है कि पुस्तकालय में एक विंग लाइब्रेरी एंड इनफार्मेशन साइंस के अध्ययन हेतु स्थापित किया गया है, जहाँ पर Library Science की शिक्षा दी जाती हैं।
आजकल विश्वभर के शिक्षण संस्थानों और पुस्तकालयों के बीच नेटवर्क स्थापित किये जा रहे हैं, जिससे पुस्तकालय अपनी पुस्तकों, जर्नल या डिजिटल लाइब्रेरी को साझा कर सकें। मैं आशा करता हूं कि यह प्रतिष्ठित पुस्तकालय इन नेटवर्क का भाग है। मैं चाहूंगा कि पटना विश्वविद्यालय पुस्तकालय विश्व के सभी बड़े पुस्तकालयों से जुड़े। आज के उच्चस्तरीय सूचना और संचार तकनीकी के माध्यम से दुनिया के हर कोने का ज्ञान पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को मिले तथा पटना विश्वविद्यालय के पुस्तक और दुर्लभ पांडुलिपियों और पुस्तकें दुर्लभ संग्रह की सूचना विश्व भर में पहुंचे। जैसा कि ऋग्वेद में कहा भी गया है – अनो भद्रा: कृतवो यन्तु विश्वत: - हर दिशा से कल्याणकारी विचार और ज्ञान हम तक पहुंचें। यही एक विश्वविद्यालय के वैश्विक चरित्र को परिभाषित करता है।
अंत में मैं, पटना विश्विद्यालय पुस्तकालय से जुड़े सभी महानुभावो को इस पुस्तकालय का शताब्दी समारोह मनाने के लिए बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि इस संस्थान की प्रतिष्ठा में उत्तरोत्तर वृद्धि हो।

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